आकाश के कटघरे में सूरज की जिरह

डॉ. प्रसन्न पाटशाणी के द्वारा लिखे गए कविता संकलन 'आकाश के कटघरे में सूरज की जिरह' की भाषांतर डॉ. शंकर लाल पुरोहित ने किया है।
Author: डॉ. प्रसन्न पाटशाणी
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डॉ. प्रसन्न पाटशाणी का काव्य अपने बिंब बहुधा प्रकृति से ही चुनता है। उनके लिए प्रकृति जड़ नहीं है, जीवन सत्ता है। यह संकलन की कविताएँ मेरे सामाजिक उस्तव कल की है। दुनिया का वहरूप कुछ भित्र ढंग से मेरे सामने गतिशील था। सवेंदन का जो ज्यार देखा, वह आज अकल्पनीय है । वह कोई करुणा या दया वाला न था, शुद्ध समावेदन ओर शेहापूर्ण उछाल भाव उनको विभोर किया।

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